- वीरेन्द्र ‘सरल‘
जिनगी के व्यथा ह मनखे बर कथा होथे। सबरदिन ले कथा-कंथली ह मनखे के जिनगी के हिस्सा आय। मनखे जब बोले-बतियाय ल नइ सिखे रिहिस मतलब जब बोली-भाखा के विकास घला नइ होय रिहिस तभो मनखे अपन जिनगी के अनुभव ला भितिया में रूख-रई, चिरई-चिरगुण, साँप-डेरू, हिरू-बिच्छू के चित्र ला छाप के परगट करत रिहिन काबर कि ओ समे अपन दुख-दरद ला जनवाय के अउ कोन्हो साधन नइ रिहिस। जब बोली-भाखा के विकास होईस तब मनखे अपन बात ला मुँह अखरा एक पीढ़ी ले दूसर पीढ़ी पहुँचाय के उदिम करिस। इही ल लोक साहित्य कहे गिस जउन आज ले चलत हे। कथा-कंथली ह अपन बात ला कहे अउ समझाय के सबले सस्ता अउ बढ़िया माध्यम बनिस। काबर कि येमा अउ काय होही कहिके जाने बर मन ह अघाबे नइ करय। कहिनी म मन ह अतेक रम जथे के बेरा के पता नइ चलय अउ कहिनी ह काय कहना चाहत हे अहू बात ह अन्तस में पहुँच जथे। हमर छत्तीसगढ़ी के लोक साहित्य में नान्हे कहिनी के बात करे जाय तब ‘ढेला अउ पान‘, ‘डोकरी अउ बादर‘, राजा अउ चिरई के नान्हे कहिनी ला कोन भुला सकत हे? आज ले सियान दाई मन लइका भुलियारे बर इही कहिनी ला सुनावत हे।
आज जमाना गजब बदलगे हावे। अपन बात ला बोले बताये बर हमर मेरन गजब अकन किसम-किसम के साधन होगे हावे फेर कहिनी के महत्व ह ज्यों के त्यों बने हावे। नान्हे-नान कहिनी में जिनगी के बड़े-बड़े बात ल कहे के कला सब झन ला नइ आवय। कोन्हो-कोन्हो ला अइसन कला ह मिलथे। बड़े बहिनी डॉ षैल चन्द्रा ह ये कला ला पाय हे। हिन्दी लघु कथा में तो ओखर नाव के षोर ह देष भर म बगरेच हे फेर अब छत्तीसगढ़ी लघु कथा मे घला ओखर नाम ला बड़ सन्मान ले ले जाही। षैल दीदी के पहिली घला कोन्हों छत्तीसगढ़ी लघु कथा संग्रह छपवाय होही ये बात के तो मोला जानकारी नइ हे, अभी-अभी षैल दीदी के लघु कथा संग्रह ‘गुड़ी अब सुन्ना होगे‘ पढ़े के मउका मिलिस तब जानेव ‘गागर मे सागर काला‘ कहे जाथे। पहिली जमाना म गाँव के गुड़ी के ओतकेच महत्व रिहिस जतना आज देष बर संसद भवन के हाबे। गुड़ी ह गाँव के ओ ठउर आय जिहां गाँव भर के मनखे मन दिनभर के काम कमई ले फुरसत पाय के बाद जुरियावय अउ अपन दुख पीरा ला साझा करय। सुन्ता-सुलाहा के गोठ करय। लड़ई-झगड़ा के निपटारा करय अउ गांव के विकास बर नीति-नियम बनावय। आज ओहा सुन्ना पड़े हावय। नान्हे-नान बात बर मनखे आज कोर्ट-कचहरी के चक्कर लगावत हे। मोबाइल, नेट अउ टी वी म अइसे मगन हे कि पड़ोसी ला तो छोड़ अपने परवार के मनखे के सुख दुख के संषो तक नइ कर सकत हे। घर-परिवार, षिक्षा-संस्कार, संस्कृति-प्रकृति, कथनी-करनी सबो विशय ला षैल दीदी ह ये संग्रह के कहिनी मन म समोय के उदिम करे हावे। षैल दीदी ला गाड़ा-गाड़ा बधाई।
पुस्तक के नाव-‘गुड़ी अब सुन्ना होगे‘ प्रकाषक-आषु प्रकाषन रायपुर, मूल्य-150 रूपया।
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